Latest News

गुरू पूर्णिमा विशेषगुरू जनों को समर्पित

संसार में गहन अज्ञान के अंधकार में डूबे शिष्य को गुरु ज्ञान का दीपक हाथ में थमा देता है। गुरू ही शिष्य को ज्ञान पथ पर अग्रसर कर देता है,तभी शिष्य के सौभाग्य का द्वार खुलता है।यही कारण है कि गुरु को ब्रह्म, विष्णु महेश के समकक्ष माना गया है। गुरू को गोविन्द से बढ़कर मानने की मान्यता अंतरात्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए प्रतिष्ठापित की गई है। गुरू की उपमा ऐसी परिष्कृत एवं प्रखर अंतरात्मा से की गई है,जो अवांछनीयता का डटकर प्रतिरोध खड़ा कर सके।वह समर्थ शक्ति ही शिष्य को दिव्य दृष्टि प्रदान कर, अज्ञानता के तिमिर को दूर करने की सामर्थ्य रखती है।तभी यह कथन चरितार्थ होती है।

गुरू देते शिष्य को ज्ञान का अनमोल उपहार।
गुरू देते शिष्य को आचार, विचार, संस्कार।

गुरू शिष्य को अपनी शक्ति का एक अंश देते हैं,बदले में शिष्य गुरु पर अपनी श्रद्धा उड़ेलता है। गुरू प्रदत्त शक्ति के बिना आत्मिक उन्नति के पथ पर बहुत दूर तक नहीं चला जा सकता।जिस प्रकार पहाड़ों की ऊंची चढ़ाई चढ़ने के लिए लाठी का सहारा लेना पड़ता है,छत पर चढ़ने के लिए सीढ़ी का अवलंबन चाहिए।यही प्रयोजन आत्मिक प्रगति के पथ पर चलने वाले पथिक के लिए मार्गदर्शन गुरू ही देते हैं। गुरू अपने शिष्य को अपनी तप पूंजी प्रदान करते हैं।शिष्य भी गुरु के प्रति
समर्पण भाव सदैव बनाये रखते हैं। गुरू अपने शिष्यों को स्वयं कठोर तप करके उन पर अनुदानों की वर्षा करके मानव से महामानव बना देते हैं।जीवन में गुरू के वचन सूर्य की किरणों की तरह अवतरित होते हैं। गुरू का चरण रज स्पर्श मात्र से जीवन सुगंधित हो जाता है।यह चरण रज अमरमूल या संजीवनी बूटी होती है। शिष्य बहुत ही भाग्यशाली होते हैं जो इसे प्राप्त कर जीवन में नित नये आयाम सृजित कर, नवलकीर्तिमान स्थापित करते हैं। जिससे उन्हें जीवन में एक विशिष्ट पहचान मिलती है,और मान-सम्मान भी मिलता है।तभी शिष्य का फर्ज होता है।

देना गुरू जनों को सदैव मान-सम्मान।
गुरूओं के आशीष से मिलता सपनों को उड़ान।

गुरू साधारण मानव नहीं होते,उनका हृदय विशाल होता है।मन निश्छल, निर्मल होता है। जिनके सानिध्य में ज्ञान प्राप्ति का स्वर्णिम अवसर मिलता ही है। विचार, भावनाएं परिष्कृत, परिमार्जित भी होती है, तभी हम कहते हैं-

गुरू की कृपा अनंत, अपरंपार है।
गुरू देते शिष्टाचार करते उपकार हैं।

गुरू पृथ्वी जैसे सहनशील बनकर अथाह परिश्रम से अमृत रूपी ज्ञान बांटते हैं। जिससे जीवन आलोकित होता है। गुरू की कृपा से शिष्य अपने जीवन में आने वाली सारी बाधाओं को हिम्मत से पार कर लेता है।उसका अदम्य साहस उसके ज्ञान का प्रतिफल होता है।जिसका सही सदुपयोग सही समय पर करता है। गुरू का रूप एक कुम्हार सा होता है जो मिट्टी के लोंदे को आकार प्रकार देकर,आग में तपाकर उसे मजबूती प्रदान करते हैं।
जो जीवन में सफलता के शिखर पर पहुंच कर शीतलता प्रदान करता है।शिष्य सदैव गुरु के समक्ष नतमस्तक होकर, जीवन में विशिष्ट स्थान पाने की जिज्ञासा रखता है। हमेशा कुछ नया सीखने का भाव उसे कर्म पथ पर अडिग बनाये रखता है।
हम सभी का परम कर्तव्य है कि हम अपनी श्रद्धा, निष्ठा को प्रखर बनाकर गुरु के आदर्शों पर चलकर स्वयं को धन्य कर सकें,तभी हम गुरू – शिष्य की श्रेष्ठ परंपरा को सार्थक कर सकेंगे। गुरू पूर्णिमा के पावन अवसर पर गुरूओं के प्रति हृदय में समर्पण भाव जागृत करें चंद पंक्तियों के साथ -.

गुरू ज्ञान है, गुरू भाव है, गुरू को नमन कीजिए।
गुरू शब्द है, गुरू अर्थ है,मंथन- मनन कीजिए।
गुरू देव आराध्य हैं, चरण-स्पर्श सदैव कीजिए।
गुरू पूर्णिमा के शुभ दिवस पर आशीष गुरु का लीजिए।

गुरू का ज्ञान सदा अमूल्य,दीप जले हर राह।
अधंकार मिटा दें वो तो बन जाए सच्ची चाह।
संस्कारों की जोत जलाए, कर्म पथ दिखलाएं।
शिष्य को जीवन जीने का, सच्चा अर्थ सिखलाए।
गुरू के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित।

Pingal Baghel

मेरा नाम Pingal Baghel है, मैं IND36 NEWS का संपादक और संस्थापक हूँ!

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button